यार को पाने को मोहब्बत नहीं कहते हैं हर मजहब में मोहब्बत को शहादत कहते हैं
कैसे तोड़े संस्कारो का पहरा जीद से नहीं सजता सर पे शहरा
दुनिया कहती है हमारे पास खूबसूरत लब्ज है वो ही लिख देते है जो कहती हम से हमारी नब्ज है
रूठ कर क्यूँ टूटते हो अपनी खामोशी से क्यूँ लूटते हो
ख्वाबों से ही तो गम है इस गम से आँखे नम है
खूद से मुलाकात कोन चाहता है जनाब, वरना नजर आ जाएगा अपनी ही गलतियों का सेलाब
खूद मे खुदा बसता है बस कभी - कभी वो परखता है जो खुद में जीता है खुदा सब से उचा उसका औहदा रखता है
मोहब्बत सजा नहीं शहादत है रब की खूबसूरत सी इबादत है
ख्वाब में आने वाला नवाब मेरा हुजूर है, बीन काजी के वो हमे मंजूर है
इशक नहीं कोई जख्म है हर शक दूर कर दे वो मरहम है
हुस्न का तो राख सा हस्न होता है शीरत तो रूह सा साथ निभाती है
हर रिश्ता लगता जूठा है लगता है मेरा रब मुजसे रूठा है
प्यार खूबसूरत एहसास है इसमें बसता रब का वास है
कितने भी रहो हमसे खफा पर हम निभाएंगे वफा
कब बजेगी शादी की शहनाई और दूर होगी मेरी तन्हाई
सब से प्यारा लगता है दर्द का साथ तन्हाई मे थामता है मेरा हाथ
जीलो ये पल पता नहीं कैसा होगा आने वाला कल
संयम से बड़ा कोई तप नहीं है त्याग से बड़ा कोई जप नहीं है
ना गिनाता है और भूल जाता है मैंने गलति की कब है, उसे कहती ये दुनिया रब है
रब अपराधों से देना मुक्ति, सत्य के मार्ग पे चलने की देना शक्ति
तानों से नहीं आती बेटी पर आच, बेटी नहीं होती कोमल सा काच